कोरबा /पाली
*कोरबा/पाली* :- सरकारी योजनाओं ,व्यवस्थाओं, बुनियादी कार्यो एवं फंड खर्च में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से लागू की गई केंद्रीय कानून सूचना का अधिकार अधिनियम छत्तीसगढ़ के कोरबा जिला में भष्ट जन सूचना अधिकारियों की वजह से मजाक बनकर रह गया है। भ्रष्टाचार छुपाने इस कदर मनमानी चल रही है कि अपीलीय अधिकारी व राज्य सूचना आयोग के लिखित आदेश उपरांत भी आवेदकों को वांक्षित दस्तावेजों की सत्यापित प्रतिलिपि उपलब्ध न कराकर नियमों का माख़ौल उड़ाया जा रहा है।
वन मण्डल कटघोरा अंतर्गत वन परिक्षेत्र चैतमा में स्वीकृत उपरोक्त सभी तालाब निर्माण, डेम, रोड, अन्य कार्यो एवं जीणोद्धार के कार्यों में शासन के निर्धारित गाइडलाइंस ,तकनीकी मापदण्डों गुणवत्ता की अनदेखी और संरचना तैयार कर शासकीय राशि का बंदरबाट की गई है। आपको जानकारी देते चले कि बादल दुबे आर.टी.आई. कार्यकर्ता के द्वारा 04/09/2023 को अधिनियम के तहत आवेदन पत्र के माध्यम से वित्तीय वर्ष 2022-23 में वन परिक्षेत्र चैतमा की पै केश बुक के माध्यम से जो भी भुगतान किया गया है
समस्त भुगतान सम्बन्धित दस्तावेजों की सत्यापित छायाप्रति की मांग की गई थी । किन्तु जन सूचना अधिकारी वन परिक्षेत्र अधिकारी चैतमा ने लगातार गुमराह व भ्रमित करते हुए जानकारी का खुलासा न होने पाए के उद्देश्य से प्रदान नही किया गया है । जिसके संदर्भ में आवेदक के द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय, केंद्रीय सूचना आयोग के इस तरह के प्रकरण में निर्णय/आदेश का हवाला देते हुए जानकारी प्रदान करने लिखित आग्रह किया गया ।जानकारी न मिलने पर प्रथम अपीलीय अधिकारी वन मण्डल कटघोरा के समक्ष अपील 27/10/2023 को प्रस्तुत किया गया।
प्रथम अपील सुनवाई के दौरान आवेदक बादल दुबे तथा प्रथम अपील अधिकारी डी. एफ. ओ. कटघोरा कुमार निशांत के समक्ष वन परिक्षेत्र अधिकारी चैतमा प्रतिनिधि सुरेंद्र पाल बाबू के द्वारा सात दिवस के अंदर चाही गई जानकारी प्रदान करने की बात मौखिक बयान में कही गई किन्तु डी. एफ. ओ. कटघोरा के द्वारा कुछ दिनों बाद तृतिय पक्ष की जानकारी होने की बात कहते हुए पत्र जारी कर दिया गया ।
आप समझ ही गए होंगे कि विभाग में क्या खेला चल रहा है ।जानकारी नही मिलने पर आवेदक बादल दुबे के द्वारा वन परिक्षेत्र अधिकारी चैतमा डी. के. कुर्रे व वन मण्डला अधिकारी कटघोरा कुमार निशांत के विरुद्ध दुतीय अपील राज्य सूचना आयोग छत्तीसगढ़ को दिनांक 13/12/2023 में प्रस्तुत किया गया राज्य सूचना आयोग के द्वार उक्त विषय की सुनवाई दिनांक 03/03/ 2025 को निर्धारित कर उपस्थित होने आदेशित किया गया
सुनवाई में वन परिक्षेत्र अधिकारी चैतमा डी. के. कुर्रे व आवेदक बादल दुबे उपस्थित हुए तथा वन मण्डला अधिकारी कटघोरा कुमार निशांत अनुपस्थित हुए । मुख्य सूचना आयुक्त छत्तीसगढ़ ने सुनवाई के दौरान वन परिक्षेत्र अधिकारी चैतमा व आवेदक के पक्ष को गम्भीरता पूर्वक सुनने तथा अवलोकन उपरांत दिनांक 21/03/ 2025 को लिखित आदेश पारित करते हुए आवेदक बादल दुबे को 30 दिवस के भीतर निःशुल्क जानकारी प्रदान हेतु लिखित आदेश पारित किया गया ।
तथा मुख्य सूचना आयुक्त छत्तीसगढ़ के द्वारा वन परिक्षेत्र अधिकारी चैतमा डी. के.कुर्रे व वन मण्डला अधिकारी कटघोरा कुमार निशांत को स्पष्ठ रूप से सचेत किया गया है कि भविष्य में विभाग को अधिनियम के तहत प्राप्त आवेदन को अधिनियम व प्रावधानों के तहत समुचित अध्ययन कर निराकरण सुनिश्चित करें । अन्यथा अधिनियम की धारा 20(1) एवं 20(2) के तहत कार्यवाही करने पर विचार किया जावेगा ।
अब सोचने वाली बात यह है की वन परिक्षेत्र अधिकारी चैतमा डी. के.कुर्रे के द्वारा अपनी वर्दी का पावर एक्सरसाइज करते हुए राज्य सूचना आयोग के लिखित आदेश को नजरअंदाज करते हुए धज्जियां उड़ाकर जंगल राज चला रहे है । दिनांक 29/04/2025 को उक्त प्रकरण को नस्ती बद्ध किया जाता है लेटर जारी किया गया है ।अब इनको कौन बताए कि आयोग के कोर्ट में चल रहे प्रकरण को नस्ती बद्ध करने का अधिकार उनके पास नही है ।
खैर भ्रष्टाचार का गढ़ बन चुके कटघोरा वनमंडल वन परिक्षेत्र चैतमा के द्वारा आरटीआई की अवहेलना करना कोई नई बात नहीं है। राज्य सूचना आयोग छत्तीसगढ़ के आदेशों की अवहेलना करने नाफरमानी करने के कई मामले मिल जाएंगे। दरअसल इसकी कई वजह मानी जा रही। जबकि राज्य सूचना आयोग के पास जन सूचना अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही तथा अर्थदंड लगाने का अधिकार है।
विशेष मामलों में अर्थदंड की राशि बढाई भी जा सकती है। यही नहीं राज्य सूचना आयोग अनुशासनात्मक कार्रवाई सुनिश्चित कराने अथवा गम्भीर मामलों में धारा 20 (1) ,20 (2) के तहत एफआईआर दर्ज कराए जाने तक की अनुशंसा का अधिकार है।इसके अलावा लगभग सभी विभागों में प्रथम अपीलीय अधिकारी उसी विभागों के रहते हैं जिससे जन सूचना अधिकारियों के मन में कार्रवाई का भय लगभग नहीं के बराबर रहता है।
कहीं न कहीं निर्णय भी इनके प्रभावित होते हैं। यही नहीं विश्वस्त सूत्रों के अनुसार अधिकांश जन सूचना अधिकारी इसलिए नहीं डरते हैं क्योंकि उन्हें किसी न किसी तरीके से राजनीतिक व अपने उच्च अधिकारियों का संरक्षण मिला रहता है।
बादल दुबे आईटीआई कार्यकर्ता की माने तो जल्द ही इस प्रकरण से सम्बंधित समस्त दस्तावेजों के साथ लिखित शिकायत मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ शासन, राज्य सूचना आयोग छत्तीसगढ़, मुख्य सचिव छत्तीसगढ़ सामान्य प्रशासन विभाग छत्तीसगढ़, सचिव वन मंत्रालय छत्तीसगढ़, पीसीसीएफ अरण्य भवन छत्तीसगढ़ के अलावा केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त भारत सरकार से की जाएगी ।






