छत्तीसगढ़ में ग्रिड पद्धति की खेती से रिटायरमेंट के बाद रची सफलता की नई कहानी । किसान रामरतन निकुंज ने की रिकॉर्ड पैदावार कर किसानों के लिए बनाया प्रेरणा का मार्ग

कोरबा । छत्तीसगढ़ की धरती को हमेशा से अन्नदाता किसानों की कर्मभूमि कहा गया है। यहाँ की मिट्टी में परिश्रम, समर्पण और उम्मीद की सुगंध रची-बसी है। वर्षों से प्रदेश के किसान अपनी मेहनत और लगन से खेत खलिहानों को समृद्ध करते आए हैं। समय बदलने के साथ-साथ खेती-बाड़ी की पद्धतियाँ भी बदल रही हैं। परंपरागत खेती के साथ आधुनिक तकनीकों का संगम आज नए-नए चमत्कार कर रहा है। इन्हीं परिवर्तनों के बीच कोरबा जिले के झगरहा गाँव से एक ऐसी प्रेरणादायी कहानी सामने आई जिन्होंने न केवल किसानों को, बल्कि पूरे समाज को यह संदेश दिया है, कि सफलता पाने के लिए उम्र कोई बाधा नहीं होती, बल्कि सही सोच और मार्गदर्शन से असंभव सपने भी साकार किए जा सकते हैं।
यह कहानी है 67 वर्षीय प्रगतिशील किसान श्री रामरतन राम निकुंज की, जिन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद खेती को अपनाया और अपनी मेहनत व वैज्ञानिक दृष्टिकोण से वो मुमकिन कर दिखाया जो बहुतों के लिए केवल कल्पना था। उन्होंने यह साबित कर दिया कि यदि इरादा पक्का हो और धरती माँ के प्रति लगाव सच्चा हो, तो खेत सुनहरी फसल से लहलहा उठते हैं और किसान समृद्धि की मिसाल बन जाते हैं।

निजी परिचय और खेती की शुरुआत

श्री रामरतन निकुंज पहले दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड (ैम्ब्स्) में फोरमेन इंचार्ज के पद पर कार्यरत थे। वर्ष 2018 में नौकरी से निवृत्त होने के बाद उन्होंने अपने गाँव में ही कृषि कार्य को अपनाने का निर्णय लिया। उनके पास कुल 5 एकड़ भूमि थी, जिसे उन्होंने नई सोच और नई तकनीक से खेती का मॉडल खेत बनाने की ठानी। 67 वर्ष की आयु में जहाँ अधिकांश लोग आराम करना पसंद करते हैं, वहीं श्री निकुंज ने खेती में अपनी नई पारी की शुरुआत की। उनका मानना है कि धरती माँ को अगर अपनापन दो, तो वह अनमोल धन धान्य लौटाती है।

विशिष्ट तरीकाः वर्मी ग्रिड मैथड

शुरुआती वर्षों में किसान श्री निकुंज ने धान की कतार बोनी की पद्धति अपनाई। इसके बाद उन्होंने श्री विधि से धान की उपज प्राप्त की, जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। 2023 में उन्होंने वर्मी ग्रेड मेथड का प्रयोग शुरू किया, जिसने फसल की गुणवत्ता और उपज दोनों में उल्लेखनीय सुधार किया। वर्मी ग्रिड मैथड, यह एक आधुनिक और वैज्ञानिक पद्धति है जिसमें जैविक खाद, विशेषकर वर्मी कम्पोस्ट (केचुआ खाद) का उपयोग कर खेत को कई खंडों में बाँटा जाता है। इस पद्धति में खेत की मिट्टी को उर्वरक बनाने के लिए प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। खेत के अलग-अलग ग्रिड में वर्मी कम्पोस्ट डालने से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है और पौधों को संतुलित पोषण मिलता है। समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण के लिए किसान ने कतारों में वीडर का उपयोग किया, जिससे न केवल खरपतवारों का प्रभावी नाश हुआ बल्कि खरपतवार नाशक और अन्य शारीरिक श्रम में भी महत्वपूर्ण बचत हुई। वर्मी ग्रिड मैथड के फायदे मिट्टी की उर्वरता वर्षों तक बनी रहती है, रासायनिक खाद व कीटनाशक पर निर्भरता कम हो जाती है, धान की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि होती है, उत्पादन की लागत घटती है और लाभ अधिक होता है, पर्यावरण के लिए सुरक्षित और टिकाऊ खेती की दिशा में यह एक बड़ा कदम है यही कारण है कि इस पद्धति को अपनाकर श्री निकुंज ने छत्तीसगढ़ में पहला स्थान प्राप्त किया।

जिला प्रशासन और कृषि विभाग का मार्गदर्शन

खेती में सफलता पाना केवल एक व्यक्ति की मेहनत भर पर निर्भर नहीं होता, बल्कि सही मार्गदर्शन भी काफी महत्वपूर्ण होता है। इस दिशा में जिला प्रशासन कोरबा तथा कृषि विभाग का अहम योगदान रहा, कृषि विभाग के अधिकारी श्री कंवर व ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी श्री संजय पटेल ने श्री निकुंज को समय-समय पर वर्मी ग्रिड मैथड की तकनीक समझाई और वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। उनकी सलाह से खेत की तैयारी, बीज चयन से लेकर पौधे की देखभाल तक हर कदम पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया गया। वर्ष 2024 में इसी प्रद्धति से हाइब्रिड धान की खेती की गई थी जिसमें 106 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त हुई थी। इस वर्ष कुछ हिस्सों में सुगंधित और उच्च गुणवत्ता वाली ‘देवमोगरा’ धान किस्म पर सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है, जिससे किसानों के लिए उत्पादन और आमदनी बढ़ाने के नए अवसर खुले हैं। यह पहल खेती में नवाचार और बेहतर संभावनाओं को दर्शाती है। आज उनके गाँव झगरहा सहित आसपास के किसान भी उनसे प्रेरित होकर इस पद्धति को अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं।
श्री निकुंज ने केवल अपनी आय ही नहीं बढ़ाई, बल्कि आसपास के किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी बने। वे समय-समय पर ग्रामीण किसानों को नए-नए प्रयोग समझाते हैं और उन्हें जैविक खेती की महत्वता बताते हैं। उनका मानना है खेती सिर्फ आजीविका का साधन नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और समाज की सेवा भी है। अगर किसान स्वस्थ खेती करेंगे, तो समाज को भी स्वस्थ अन्न मिलेगा। उन्होंने युवा पीढ़ी को भी खेती की ओर आकर्षित करने के पक्षधर हैं। वे कहते हैं कि कृषि आज के समय में केवल परंपरागत काम नहीं, बल्कि स्टार्टअप मॉडल है। आधुनिक तकनीक, वैज्ञानिक तरीका और सरकारी योजनाओं के सहयोग से खेती व्यवसाय बन सकती है। वे कहते हैं कि खेती को बोझ या मजबूरी न समझें, बल्कि इसे अवसर मानें। साथ ही साथ उन्होंने राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई योजनाओं और अनुदानों का भी लाभ लिया। वर्मी कम्पोस्ट संयंत्र लगाने, उन्नत किस्म के बीज पाने और खेती में प्रशिक्षण लेने में विभाग ने उनका साथ दिया। इससे उन्हें आर्थिक सुविधा मिली और नई तकनीक अपनाना आसान हुआ। उनकी प्रेरणादायक कहानी यह स्पष्ट करती है कि सही दिशा, कठोर परिश्रम और नवीनतम तकनीकों को अपनाने से खेती को एक समृद्ध और सतत व्यवसाय में बदला जा सकता है। उनकी उपलब्धि सिर्फ व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए एक उज्जवल उदाहरण है।

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